Sep 11, 2016

KUSHTI WRESTLING: Vikram Pahlwan of Firozabad, Uttar Pardesh

By Deepak Ansuia Prasad










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विक्रम पहलवान - गाँव अधमपुर

क्या विक्रम जैसा प्रतिभावान का खेल भी सरकार और समाज की उपेक्षा का शिकार हो दम तोड़ देगा ? देश में खेल और खिलाड़ियों का हाल क्या होता हैं , ये विक्रम पहलवान से अच्छा कौन जानता होगा। बचपन से ही पहलवानी का अभ्यास करते हुए विक्रम पहलवान अब जिले में एक अच्छा पहलवान हो गया हैं। मैंने देखा की फीरोजाबाद के और आस पास के गाँवों में लगे छोटे बड़े दंगलों में उसकी जोड़ का पहलवान कम ही मिलता हैं। हाँ बाहर से आये पहलवान ही विक्रम से टक्कर ले पाते हैं। लेकिन विक्रम कुश्ती हारता नहीं , और न ही ऐसा होता हैं की दर्शको का मनोरंजन न हो। दर्शक उसकी कुश्ती पसंद करते हैं। क्षेत्र के छोटे बड़े दंगलों में उसकी कुश्ती होनी लाजिमी सी हैं। लेकिन इनाम की मात्रा नगण्य सी ही है।

ऐसे समय में विक्रम को सबकी जरूरत थी। एक जगह जहाँ कुश्ती का कल्चर ख़तम हो चूका हैं। गाँवों की जवानी को कांच की फैक्टरियों की आग खाये जा रही हैं। कुश्ती का तो शौक बच्चे बच्चे को हैं , पर पहलवान बनने को कोई राजी नहीं। ऐसे में विक्रम अपना सबकुछ झोंक कर एक अच्छा पहलवान बना हैं। सरकारें मेडल लाने के बाद तो खिलाड़ियों पर पैसा फेंकती हैं , लेकिन उससे पहले की हकीकत नहीं जानती।

आप लोग कहेंगे की विक्रम को जिला या राज्य स्तर के स्पोर्ट्स सेण्टर में जाना चाहिए। ये लड़का अपनी किस्मत आजमाने कई बार सैफई के खेल केंद्र ( SAI - Centre ) में ट्रायल दे कर पहले स्थान पर रहा हैं , लेकिन जब साई सेंटर के लिए खिलाड़ियों की लिस्ट लगती हैं तो विक्रम का नाम नहीं होगा। आप महसूस कर सकते हैं की कैसे खेल , खिलाड़ी हार जाता हैं। राजनीति जीत जाती हैं। हाय ! यहाँ तो यादव भी यादव की मदद नहीं कर रहे। जैसा की उत्तर प्रदेश की सरकार पर इल्जाम लगता हैं। क्या होगा इस प्रदेश का।

मैं विक्रम के घर पहुंचा और उनके पिताजी से मिला , खेतीबाड़ी के अलावा कोई काम नहीं। एक गाय बंधी हैं सो उसका दूध घर में ही लगेगा । पांच बहनो के भाई विक्रम को पहलवान बनाने की लालसा अब कष्टमय होती जा रही हैं। उधर खेती में पानी देने वाली बोरिंग मशीन, बोर में ही गिर कर नष्ट हो गई हैं। सवाल उठता हैं की विक्रम के पिता उसकी बहनो की शादी विवाह के लिए कुछ रकम जोड़े ? या बोरिंग में पड़ी उस मोटर को निकाले ? जिससे की पचास रूपये घंटे पानी न खरीदना पड़े। या फिर विक्रम को कहीं बाहर पहलवानी के लिए भेजे। और बाहर तो सब कुछ चाहिए। पहलवान का खाना , रहना सहना , और कोच फीस इत्यादि। बड़ी उलझन हैं।

कुछ हल निकलता हैं , एक बड़े पहलवान उसे साई सेण्टर बुला लेते हैं , वहां उसके साथ ही वह अंदर ट्रेनिंग फैसिलिटी में प्रवेश कर सकता हैं , बाकी दिन उस बड़े पहलवान के साथ ही घूमना। पिताजी के दिए पैसे ख़तम हो जाते हैं। वहीँ साई सेंटर से भी फरमान हैं की बाहर का कोई व्यक्ति अंदर नहीं रह सकता। अब ये हो सकता हैं की विक्रम बाहर कमरा लेकर रहे। वहीँ खाये , पिए और साई सेंटर में अभ्यास कर के , सीधा नेशनल के लिए ट्रायल दे। हजारों रूपये पहले खर्च हो चुके हैं। अब ये व्यवस्था नहीं हो सकती। विक्रम वापस घर लौट आता हैं। बार बार जिला केसरी में लड़ने के लिए। विकत दुविधा हैं ? मैडल लाने वालों का तो हक़ हैं , लेकिन क्या ऐसी प्रतिभाओं के लिए किसी के लिए दिल में जगह भी नहीं ?

विक्रम अब वापिस लौट आया हैं , उसके पिताजी कहते हैं की अब तो मन करता हैं की विक्रम को कहूँ लंगोटी टांगो , और चूड़ियों के कारखाने में जाकर काम करो। विक्रम के लिए ये करना बहुत मुश्किल होगा। समाज , सरकार और खेलसंघों की अवहेलना झेल रहे विक्रम को घर से भी अगर सपोर्ट न मिल पायेगा तो उसका ह्रदय टूट जाएगा। उसकी उम्मीदें दम तोड़ देंगी। क्या वो भी एक खत खून से लिखकर , मोदी जी को भेज के आत्महत्या करले ? यदि नहीं तो क्या करे ?
आज बंसीवाले का जन्मदिन हैं। बंसीवाले की ही सुने क्या कह गया अर्जुन को।
तस्मादज्ञानसम्भूतं हृत्स्थं ज्ञानासिनात्मनः ।
छित्वैनं संशयं योगमातिष्ठोत्तिष्ठ भारत ॥
उन्होंने अर्जुन को बताया की जब ह्रदय में ऐसा संशय हो , ऐसा घोर अँधेरा हो , ऐसा अकर्मण्यता की स्थिति हो , तू उस संदेह को अपनी विवेक रूपी ज्ञान की तलवार से काट डाल , उसका छेदन , विभेदन कर ले। अपने कर्मयोग में खड़ा हो जा। चल उठ और युद्ध कर।

विक्रम पहलवान की ये कहानी फीरोजाबाद और आस पास के पहलवानो के साथ हो रहे दुर्व्यवहार , अवेहलना और तिरस्कार का प्रतीक हैं। इस कहानी के जरिये क्षेत्र की खेल परंपराओं के दर्शाने का मैंने यथा संभव प्रयत्न किया हैं। अतः ऐसी ही कहानी लगभग हर पहलवान की हैं। कुछ पहलवान कर्म छोड़ दारु शराब से गम गलत कर रहे हैं। कुछ शहर ही छोड़ दूर दराज के शहरों में जाकर मेहनत मजदूरी कर रहे हैं , कुछ तो फीरोजाबाद की कांच की फैक्टरियों में दिन रात एक कर रहे हैं। रक्षाबन्धन के बाद फसल का समय अब नवम्बर में ही होगा , इस दौरान हर तीज त्योहारो पर दंगल होंगे , जिनमे ये सब पहलवान और कुश्ती प्रेमी इकठे होकर अपने सुनहरे दिनों को याद करेंगे। दंगल कमेटियां भी मुश्किल से पैसा इकट्ठा कर पाती हैं। इनाम में बिस्कुट का पैकेट , साफा , लोटा , बाल्टी और बहुत बड़ा हो तो एक साइकिल प्रचलित हैं। कुछ पहलवान तो केवल अपनी कला फ्री में ही दिखा कर खुश हो लेते हैं क्षेत्र के जिलाधिकारी , एम् एल ए , प्रधान , प्रमुख अक्सर ऐसे खेल प्रदश्नो से नदारद रहते हैं। खेलों की और बच्चों को आकर्षित करने के और क्या कदम होंगे ,मैं तो नहीं जानता। पर लोग बताते हैं , की अगर इलेक्शन टाइम हो तो कौओ की तरह नेता दंगलों में मंडराने लगते हैं। फिर पांच साल के लिए गायब।

अब सवाल ये हैं की क्या फूलन देवी बनने के लिए उसका रेप होना , नंगा किया जाना जरूरी हैं ? क्या हर बार द्रोपदी के चीर हरण होने पर ही भीम प्रतिज्ञा लेगा ? क्या



ENGLISH VERSION



I have written a lot about Vikram Pahlwan. His father has sacrificed everything to make him a good wrestler, even selling a piece of land to provide food for him. He has become the best wrestler in his district, winning the Jila Kesari title many times. He has never lost a bout. Having crushed all the local wrestlers time after time, they have to bring in wrestling from outside his town to give him a challenge.

Now Vikram needs a support. He needs funds to enable him to continue his training. With the right support, he could hone his skills further and win many big cash prizes.
As it stands, politics and inadequate training facilities are hampering his career. Recently he applied for admission to Safai, the sports training facility, where he defeated many opponents in his trials. But for some reason, he wasn’t admitted.

He even sought help from a famous wrestler who took him to national camps, but rather than helping Vikram, the wrestler merely used him to help with his own training, costing Vikram precious practice time.

Now the question is: What will happen to Vikram’s wrestling career?

Vikram has been instrumental in promoting kushti culture around his town, drawing huge crowds of fans eager to watch him thrash all his challengers.

When I reached Vikram’s home at Firozabad, his father welcomed me, but was visibly distressed by financial matters.

He has to save money for the marriage of Vikram’s sister, he must arrange water for his crops, and above all he needs to cover the expenses for Vikram’s diet.

As I milked a cow whose milk is only source of protein for the vegetarian wrestler, Vikram’s father told me the situation is grim and they need help with funds.

I went to watch Vikram wrestle in dangals at Marghati and at Angadpur. At Marghati he easily pinned an inferior wrestler, while at Angadpur he had to wrestle an opponent who was much bigger and heavier. Still, Vikram held his own and while he didn’t pin the much bigger wrestler, the match eventually ended in a draw.

The story of Vikram Pahlwan is much the same as for every wrestler around Firozabad. The government shows no concern or support for these great athletes. Many of them become so disappointed by this neglect they turn to drinking. It is heartbreaking to watch.

Vikram will not go down this path. His spirit and his love of kushti are too strong. But he needs financial support. Contact me at ansuia74@gmail.com if you would like to help.


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