रिठोल उत्तर प्रदेश का एक प्रसिद्ध गाँव है, जिसका एतिहासिक महत्व है ! महाभारत काल के समय में यहाँ सूती ब्राह्मणों का निवास था ! कुछ तीन -चार साल पहले खुदाई में मिले देवी देवताओं की मूर्तियों के अवशेष इस बात के प्रमाण है , जिन्हें पुरातत्व विभाग को सौंपा गया है ! कालांतर में राठोड राजपूत यहाँ आकर बस गए , और रिठोल गाँव का नामकरण हुआ , इस दौरान सभ्यता यहाँ फली फूली और कई और अन्य गाँवो का भी निर्माण हुआ ! वर्तमान में इस गाँव के चारों ओर बेहडा, डगरपुर , सर्फाबाद, कास पुर मोकाम पुर, नेह्चोड़, सुख्रोली, सिम्होली, चिरोरी, मंदोला, ट्रोनिका सिटी, फारुक नगर, अस्ताल पुर, कासना, बेह्बोल पुर, गोकुल पूरी इत्यादि अनेक गाँव है !
सूती ब्राह्मणों ने यहाँ पर शिव मंदिर का निर्माण किया , और शिवरात्री के अवसर पर सब गाँव वालों के द्वारा सामूहिक पूजा अर्चना का आरम्भ किया गया , जो वर्तमान में एक बड़े मेले का रूप ले चूका है !
मुग़ल राजाओं के समय में मुलिम समुदाय ने भी यहाँ अपने गाँव बसाए , जो वर्तमान में इस क्षेत्र की जनसंख्या के एक बड़े भाग को दर्शाते है ! एक महान सूफी संत मखदूम चिस्ती ने इस क्षेत्र के लोगों में प्रेम , सद्भावना और सहिष्णुता की भावना का संचार किया और आजीवन इस क्षेत्र के लोगों की सेवा में तत्पर रहे , उनके परलोक गमन के बाद भी उनके उत्तराधिकारियों ने उनके परंपरा को जीवंत रखा और उनकी दरगाह पर सालाना मेले और उर्स सजते रहे ! अब यहाँ पर तीन दिवसीय विशाल मेला लगता है !
रिठोल में महाशिव रात्रि और उसके कुछ दिन बाद संत मखदूम चिस्ती की दरगाह पर लगने वाले मेलों का बड़ा महत्व है, चारों दिशाओं के गावों से लोगों, बच्चों, बड़ो, नर नारियों का बड़ा समूह रिठोल गाँव पहुँचता है , यहाँ पर पारंपरिक मेले की धूम देखने को मिलती है, ग्रामीण समाज की जरूरतों को पूरा करने के लिए व्यापारी हाट लगते हैं, बच्चों के लिए झूले, खिलोनो की दुकाने, स्त्रीयों के लिए साज सज्जा का सामान , तरह -२ के व्यंजन, मेले में आकर जलेबी खाने का मजा ही कुछ और है !
इन दोनों मेलों का आकर्षण है कुश्ती प्रतियोगता - दंगल ! शिव मंदिर और दरगाह पर तीन दिन चलने वाले मेले में दंगल भी तीनो दिन देखने को मिलती है ! आज भी ग्रामीण समाज में कुश्ती के प्रति अगाध प्रेम है, दंगल शुरू होते ही, लोग अखाड़े को घेर बैठते है, कुछ पेड़ों और कुछ आस पास के घरों की दीवार तक पर जा बैठते हैं इस प्रकार सैकड़ों दर्शकों के बीच पहलवान अपना करतब दिखा वाहवाही बटोरते है और कुछ इनाम भी !
हर साल पहला दंगल हिन्दू समुदाय के लोगों द्वारा शिव मंदिर पर , महा शिवरात्रि के समय पर करवाया जाता है, बड़ी संख में मुस्लिम समुदाय आकर दंगल को सुचारू रूप से चलने के लिए कंधे से कन्धा मिला कर काम करते है , और इसके कुछ दिन बाद सूफी संत मकदूम शाह की दगाह पर मुस्लिम समुदाय द्वारा दंगल कराया जाता है, जिसमे हिन्दू समुदाय के लोग बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते है, इस प्रकार कुश्ती का खेल , रिठोल गाँव में हिन्दू मुस्लिम एकता, भाईचारे और प्रेम का प्रतीक बन चूका है, जिसका अन्यत्र उद्धरण असंभव है !
इस बार में दंगल में तत्कालीन विधायक प्रशांत चौधरी , मेहराजुद्दीन मंत्री जी, विधायक अशोक चोव्धारी, प्रमुख लीलू पहलवान और गुरु राजकुमार गोस्वामी ने दंगल में शिरकत कर दंगल को शोभायमान किया !
लीलू पहलवान डगर गाँव के प्रमुख है ! वह एक साधारण और सहृदय व्यक्ति है ! लीलू पहलवान स्वंयं भी, अपने समय में एक अछे पहलवान रहे है ! उन्होंने गुरु राजकुमार गोस्वामी जी से कुश्ती की शिक्षा प्राप्त की ! लीलू पहलवान ने तन , मन , धन से रिठोल के दोनों दंगलों में सहयोग दिया ! शिव मंदिर समिति को भी दान दिया ! दोनों दंगलो में रेफरी का कार्य, पहलवानों की जोड़ मिलाने का कार्य हो या उग्र भीड़ को शांत करने का कार्य हो उन्होंने बखूबी अंजाम दिया ! मेला कमेटी ने सीमित संख्या में कुश्तियों का निर्णय लिया था , लेकिन पहलवानों को लीलू पहलवान ने खाली हाथ न जाने दिया और उनकी कुश्तिया अपने खर्च पर कराइ , दंगल कमिटी को पहलवानों को उचित इनाम मिले इसलिए अपना पूरा सह्यौग दिया ! कुश्ती के इस प्रेमी सज्जन को देख ह्रदय उनके प्रति सम्मान से भर उठा , मैंने पहले कई बार लिखा है की इन दानी सज्जनों के प्रयत्नों के परिणाम ही कुश्ती की महँ परम्परा सैकड़ों , हजारों वर्षो से जीवित है ! लीलू पहलवान के सुपुत्र सिंटू पहलवान भी एक अछे पहलवान है उन्होंने दंगल में छुट्टी की कुश्ती में विजय हासिल की !
ENGLISH VERSION
Rithol is a village in Uttar Pradesh with a long history dating back to the time of Pandavas from the Hindu epic Mahabharta. Over the years, Rathod Rajputs settled nearby and their civilization flourished, expanding into dozens of other villages, like Behda, Sarfabad, etc.
The Sooti Brahmins constructed a temple there for Shiva, the god of death and destruction. Every year during Shiva Chaturthi or Mahashivratri, the birthday of Shiva, the villagers would hold a great festival where people come to pray, shop in the market, and enjoy themselves.
After the Mughals introduced Islam to India, Rithol became more diverse, with Hindus and Muslims living side by side. During the time of the Emperor Akbar the Great, a Sufi saint named Makhdoom Chisti preached love, tolerance, and brotherhood to the people of Rithol and nearby villages. His madrassa and dargah can still be seen in the village. After his death, the people of the area would recite his teachings in the form of Mushayara and Qavvali and they also started a tradition of holding a feast to honor Makhdoom Chisti.
Today, Hindus and Muslims still live together in Rithol Village and they each continue their festivals, one right after the other. Both celebrations attract lots of people from every walk of life. There’s music, dancing, and carnival rides for kids as well as shops selling all kinds of food and sweets.
But the main attraction is a big wrestling competition held over several days. The first dangal is organized by the Hindu community at the Shiva temple. Lots of Muslims also come to help organize. The good will is reciprocated when the Muslims hold their dangal at the shrine of Saint Makhdoom Chisti. It’s a beautiful example of how people from different religions can live together in peace and harmony and it’s a joy to witness.
The chief guests at the dangal included Leelu Pahalwan, MLA Prashant Chowdhary, Mehrajuddin, and the MLA and minister Ashok Chowdhary.
Leelu Pahalwan is something of a legend in Indian wrestling. He is the Pramukh, or head of the village of Dagarpur, nearby Rithol. He was a great wrestler in his day, learning the art of Indian wrestling at the akhara of Guru Rajkumar Goswami of Gokulpuri.
Throughout his life he has been an ardent supporter of wrestling.
Most people come to dangals and sit and watch the competitions. But Leelu Pahalwan is pitches in and helps out wherever there is need. He gave 5000/- to the Shiva temple committee for the welfare of the temple. Then he helped the organizers running the dangal. Leelu Pahalwan knows how to pair wrestlers, and how to make a boisterous crowd settle down. When the dangal committee was hesitating to allow more than the planned number of bouts, he offered to contribute to the prize money so every wrestler could get a match.
“Leelu Pahalwan is simply unstoppable when he sees wrestlers in need,” says Guru Rajkumar Goswami. He comes away from competitions without much money in his pocket, but the respect and admiration he gets from wrestlers, gurus and spectators has much greater value.
Seeing Leelu Pahalwan’s dedication and generosity, as Hindus and Muslims come together, shows how the ancient tradition of Indian wrestling can really bring out the best in people.
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