By Deepak Ansuia Prasad
बदर पुर में सैकड़ों वर्ष पुराना ऐतिहासिक जन्माष्टमी महोत्सव कुश्ती दंगल इस बार धूम धाम से संपन्न हुआ, कुश्ती अपने मुकाम की और अग्रसर है, फलस्वरूप अनगिनत पहलवान दंगल में भाग लेने पहुंचे ! दंगल में हुई कुश्तियों की संख्या हज़ार पार कर गई , ये कुश्ती के लिए एक शुभ संकेत है ! पत्रकारिता से जुड़े अपने कुछ दोस्तों के साथ मीठापुर के दंगल मैदान पर पहुंचा , दंगल के संचालक भगत भाई ने स्वागत किया वो मेरे अछे मित्र हैं , और कुश्ती की सेवा में जुटा, मेरे पत्रकार दोस्तों को गर्मी , और दंगल की भीड़ ने परेशान किया , इधर हटो , उधर हटो, ओ फोटो वाले पीछे हो , हा हा हा...वो बेचारे तो निकल लिए, कितने सालों से ये सब सुनता आया हूँ, पर निरंतर सेवा जारी है, खैर, अपने अखाड़े के ही नहीं दुसरे पहलवान भी मुझे सम्मान देते हैं, उसके आगे फिर सब फीका पद जाता है, जब कोई पहलवान पैर छूकर पहलवान जी नमस्कार कह देता है, तो दंगल में भूख , प्यास , पानी भूल जाता हूँ, ! अपने दिन भी याद आते हैं, मेरे एक मित्र सूरज पहलवान की लड़की के नाम दंगल रहा , सूरज पहलवान गरीब जरूर है लेकिन अपने दोनों लड़कों और एक लड़की को पहलवानी करा रहे हैं, हंसी खेल नहीं है, ११००/- रुपये पर उनकी लड़की की कुश्ती , एक पहलवान लड़के जो गुरु होते का पट्ठा था उससे हुई, लड़के ने झोली का दांव भरा जो जल्दी खाली नहीं जाता , लेकिन सूरज पहलवान की लड़की दिव्या पहलवान ने बड़ी फुर्ती से बचाव कर चित्ते दे मारा , थोड़ी देर तक दंगल का मैदान दिव्या के नाम से गूंजता रहा , इनाम तो मिला ही, दर्शकों के दिए इनाम से दिव्या की झोली भर गई, नेता जी रामवीर बिधूड़ी ने ६०००/- अपनी तरफ से दिए, दाल रोटी पर गुजारा करने वाले सूरज पहलवान द्वारा अपनी लड़की को अपने बलबूते पर पहलवानी कराना हंसी खेल नहीं है, अब समझ जायेंगे की हमारे देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, लेकिन मेडल क्यों नहीं मिलते, ओलंपिक में गीता की हार नहीं , जीत है अपने बलबूते पर ओलंपिक तक पहुंचना हंसी मजाक नहीं है, सरकार तो जब मेडल ले आओ तब भी एक छोटी नौकरी देने के लिए चक्कर कटवाती है, इस देश में दिव्या जैसी उभरती प्रतिभाओं के साथ क्या होगा इसका खुदा ही मालिक है, वैसे मेरे आप सबसे से प्रार्थना है की आप अपने बच्चों को खेलों में जरूर डालें,
दंगल की बड़ी कुश्ती में भी कई पहलवान आये १०००००/- के इनाम को दो भागों में बाँट कर विक्रम और वरुण तथा निशांत और हितेश की ५१०००/- क इ कुश्तिया करवाई गई, सभी गुरु खलीफाओं को और मुझे भी, पगड़ी शाल , और ११००/- देकर विदा किया गया ,
ENGLISH VERSION
In India, wrestling competitions are a common sight at local festivals. On the occasion of Janamshtmi, the birthday of Lord Krishna, a huge traditional dangal was organised by the people of Badarpur, Meethapur, Moladband, Aali, and neighbouring villages. This is one of the oldest annual dangals in the region and it is very well organized, with a big wrestling arena, sound system, seating, and a big stage tent for guests and dignitaries to watch. The dangal committee got good sponsors to distribute cash prizes among the wrestlers so it became a huge competition.
Wrestling in India is on the rise. This could be seen by the number of participants in the competition. I could count more than a thousand wrestlers, so there was a lot of jostling to get matches for all the wrestlers.
My friend Suraj Pahlwan also came to compete. He is teaching all his three children the sport of wrestling, including his daughter, who Suraj brought along hoping she would find another girl to wrestle, but there weren’t any. So it was decided that she would be allowed to challenge a boy. Before long, she found a boy to take up the challenge and the two squared off. He seemed to think he would beat her easily and he started out the match in a dominant position. He took her down and put her on her back. He almost had her pinned when she turned his momentum against him and flipped him over. He struggled to get off his back, but she drove his shoulders into the ground, pinning him. It was an amazing sight. The male wrestler was totally stunned and the crowd cheered the girl’s victory and gave her a garland of money and cash prizes.
The competition went on until sunset, and the last match was between Vikram of Guru Jasram and Varun of Railway Akhada. Varun seemed to dominate Vikram, who kept on moving out of bounds, so the match was decided in the favour of Varun.
Nishant, another wrestler from Guru Jasaram, was making a comeback after a long absence from wrestling. He was up against a wrestler named Hitesh and the two battled for quite a while, with Nishant having the upper hand for most of the bout. But the light was fading and the match was eventually called off.
At the end of the day, the dangal committee honored every guru, coach, and guest – including me. I thanked them for inviting me and congratulated them on such a successful event.
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