गुरु इन्दर अखाडा सोहना,- खलीफा हंसराज पहलवान
हरयाणा के सोहना क्षेत्र में गुरु इन्दर सन 1966 से ही अखाडा चलाते रहे , और वहीँ हंसराज पहलवान ने पहलवानी कि विधा सीखी। अपने हुनर को निखारने वो दिल्ली और पंजाब के अखाड़ों में भी पहुंचे। पिताजी के देहावसान के बाद उन्होंने अखाड़े का कार्यभार सम्भाला और कुश्ती के बुरे समय में भी नई पीढ़ी पहलवानो को तैयार किया और पहलवानी कि परम्परा का निर्वाहन करते रह.
इस दौरान उनके अखाड़े में सुविधाओं का हमेशा अभाव ही रहा , लेकिन इसके बावजूद उन्होंने मिटटी और मैट के अच्छे पहलवान तैयार किये जिन्होंने देश भर कि कुश्ती प्रतियोगिताएं में भाग लिया और विदेश में भी सोहना और देश का नाम रोशन किया।
इस दौरान उन्हें बहुत मुश्किलें झेलनी पड़ी, यहाँ तक कि कई बार अखाड़े की जमीन तक से ही हाथ धोना पड़ा. कभी सड़क में अखाड़े कि जमीन आ गई तो कभी कुछ राजनीतिक या सामाजिक समस्याएं। हाँ अखाड़े छूटते रहे टूटते रहे, लेकिन हंसराज पहलवान न ही टूटे , न ही हार मानी।
हंसराज पहलवान एक बहुत बेहतरीन दंगल भी सोहना में करवाते हैं, जिसमे देश के बेहतरीन पहलवान लेते हैं , दंगल के बेहतरीन संचालन में उनका सानी कोई नहीं। और दंगल में लोग जिस शांति के साथ बैठ कर कुश्तिया देखते हैं वो विरले ही कहीं और दिखाई देती हैं. दंगल में पहलवानो के जोड़ मिलाने और उनके इनाम तै करने में तो उन्हें महारत हासिल हैं.
हाल ही में उन्हें क्षेत्र के चेयर मैन संजीव शर्मा जी के सहयोग से अखाड़े कि जमीन मिली और उन्होंने उसमे मिटटी का अखाडा बनाया है , उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही वहाँ पर एक बेहतरीन अखाडा तैयार होगा। जिसमे सभी मूलभूत सुविधाएँ होंगी और सोहना और आसपास के क्षेत्र में पहलवान तैयार होंगे, मै चेयरमैन संजीव शर्मा जी का हार्दिक धन्यवाद करता हूँ, और हंसराज पहलवान को भी कुश्ती के प्रति उनके समर्पण के लिए धन्यवाद देता हूँ!
English Version
Hansraj Pahlwan's father, Guru Inder, used to run a local akhada since 1966 at Sohna in Haryana. It is where Hansraj Pahlwan learned the art of wrestling. He undertook more training later in Delhi and Punjab where he honed his skills and became a very good wrestler. After his father's death, he took reins of the akhada in Sohna and started teaching the art of wrestling to students there.
The akhada kept the tradition of kushti at Sohna alive even when wrestling had fallen out of favor. No assistance like mat facilities or a shade or even the basic things like water or sanitation were ever given by anybody or government authorities. Hansraj Pahlwan faced many difficulties. His akhada was moved many times on the pretext of road widening or other reasons and he received no compensation. But he never gave up.
During last 15 years he has seen many ups and downs. However, he has been running the akhada where ever he can find a temporary place. He is happy to put on a langoti, the basic wrestling clothing in India to teach his disciples, and he has produced many good kushti and freestyle wrestlers for Haryana and India.
His akhada was forced to move again last year, leaving him searching a place to start afresh. Last month the chairman of the area Sanjeev Sharma and his wife helped him and allotted a piece of land at the outskirts of Sohna to start a wrestling school again.
I personally thank Sharma ji for his generosity, pandit ji ka bahut bahut dhanywaad. He is now starting fresh and i feel very happy and thankful to him for inviting me to see and cover his akhada once more. Thanks to Hansraj Phalwan for his undying spirit.
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