By Deepak Ansuia Prasad
सेठ चोखामल दंगल , कासन , नॉएडा , उत्तर परदेश,
गंगा दसहरा गुरुवार , 31 मई २०१२ !
सेठ चोखामल जी की याद में , गंगा दसहरा पर कासन , नॉएडा , उत्तर परदेश में नहर पर दंगल का आयोजन सुव्यस्थित रूप से संपन्न हुआ ! सेठ चोखामल अच्छे धनाढ्य परिवार से थे, उनके ह्रदय में देश प्रेम , जगत कल्याण , और राष्ट्र भक्ति कूट कूट कर भरी थी ! कर्म योगी , युग दृष्टा चोखामल जी स्वतंत्रता सेनानी भी थे. ! 1842 में उनका जन्म कासना के इक परिवार में हुआ था और इस महान आत्मा का देहावसान 1932 को हुआ ! अपने जीवन में काल में उन्होंने कई बार अंग्रेजो की खिलाफत की और देश को गुलामी से मुक्ति दिलाने हेतु अथाह प्रयास किये थे ! अपने साथी क्रांतिकारियों के साथ मिलकर उन्होंने ब्रिटिश राज की नींव हिला दी थी ! उन दिनों क्रांतिकारियों पर पुलिस का कहर टूटता, पुलिसिये क्रांतिकारियों को कुत्ते की भांति सूंघते फिरते , कहीं भी उनके मिलने पर भितरघात का भय भी था ! सेठ चोखामल जी ने इसका एक हल निकाला , उन्होंने गंगा दशहरा पर एक शानदार मेले की परमपरा की शुरुआत की ! इस मेले में क्षेत्र के सैकड़ों लोग शामिल होते , उनके बीच क्रांतिकारी अपनी मीटिंग करते और भविष्य की योजनाये बनाते , ब्रिटिश सरकार को भनक भी ना लगती ! शाम को कुश्ती दंगल का आयोजन होता और मल्ल अपना करतब दिखाते जिससे कमजोरों को भी बल मिलता और वो भी ब्रिटिश राज की खिलाफत कारने का साहस जुटा पाते ! समय बीता हिन्दुस्तान बना , ब्रिटिश आतताई अपना बोरिया बिस्तर समेट वापस अपने देश को लौटे , पर यह परम्परा बरकार रखी गई !
परम्परानुसार आज सुबह लोग कासना में एकत्रित हुए सेठ चोखा मॉल जी पुरानी दूकान पर पूजा पाठ हुआ, लोगों ने प्रेम और शान्ति के झंडे को जोश और उत्साह के साथ एक जुलूस की शक्ल में क्षेत्र में घुमाया और नदी में विसर्जित किया ! पट बाजी ( लाठी का खेल ) हुआ, पूजा अर्चना हुई और प्रसाद बंटा ! यह झंडा पूरे क्षेत्र के लोगों के कल्याण के लिए और पूरे क्षेत्र पर कोई आपदा , दैविक संकट ना आये इसलिए चढ़ाया जाता है ! और फिर इसके बाद दंगल के शुभारम्भ की घोषणा की गई ! इस दंगल की व्यवस्था को सेठ चोखामल जी के पोते लाला शिवचरण दास जी 1970 से 1990 तक , उनके बाद उनके पुत्र लाला महेश चंद 1990 -2000 तक और इसके बाद लाला महेश चाँद जी के पोते विपिन अगरवाल जी इस मेले के संयोजक का कार्य कर रहे है , खेल भावना और सेवा भावना के लिए इस परिवार का मै तहे दिल से धन्यवाद अदा करता हूँ ! अपनी खानदानी परम्परा अनुसार विपिन अगरवाल जी भी जनसेवा के कार्य में लगे हैं, उन्होंने घोषणा की खास्तर कुश्ती - कबड्डी जैसे देसी खेलो के उत्त्थान के लिए वे एक ट्रस्ट का निर्माण करेंगे ! विपिन अग्रवाल जी अनेक समाज सेवी संस्थाओं जैसे जय शनिदेव मित्र मंडल, अग्रवाल मित्र मंडल नॉएडा , इलेक्ट्रिकल ट्रेडर्स अस्सो., राधागोविंद परिवार , गौशाला सदन जैसे सामाजिक संस्थाओं में विभिन्न पदों पर आसीन समाज सेवा के काम में जुटे हैं! मुझे पूरी उम्मीद की वे अवश्य कुश्ती जैसे प्राचीन खेल के उत्थान के लिए भी कुछ नया जरूर करेंगे ! दंगल परम्परा अनुसार अखाड़े के पूजा के बाद बच्चों के कुश्तियों से आरम्भ हुआ ! विपिन अगरवाल , हरवीर पहलवान रेफरी रहे , दंगल की व्यस्था बनाये रखने में क्षेत्र के पुलिस का पूरा सहयोग रहा ! उनकी सहृदयता सराहनीय है ! दंगल में पुराने पहलवानों, बड़े बुजर्गों का सम्मान किया गया ! सूरज पहलवान के लड़के ने बच्चों के वर्ग में एक अच्छी कुश्ती जीती ! डगर पुर गाँव के प्रमुख लीलू पहलवान , जो की स्वयं एक अच्छे पहलवान रहे और समाज सेवी है उनके लड़के सिंटू ने भूप पहलवान के साथ जोड़ मिला अच्छी कुश्ती का पर्दर्शन किया ! दंगल की पहली कुश्ती राजेश भाटी और गुरु जसराम के शिष्य अनिल के साथ ही ,शानदार कुश्ती दिखा रहे पहलवानों में विजेता का निर्णय ना हुआ अँधेरा होने के कारण कुश्ती को रोक दिया गया ! एक बहुत अच्छी कुश्ती सर्फाबाद के बाबू और गुरु जसराम के शिष्य दानिश पहलवान के साथ हुई ! दंगल हिदुस्तान की प्राचीन परम्परा है ! और कुश्ती ही ऐसा खेल है जिसमे कुश्ती प्रेमी हज़ारों लाखों का प्रबंध करके दंगल करा , दर्शकों का मुफ्त में भरपूर मनोरंजन करते है और पहलवानों की हौसला अफजाई के लिए उन्हें जितना हो सके इनाम बाँटते हैं, इसी परम्परा को निभाते हुए विपिन अगरवाल जी ने क्षेत्रवासियों के सहयोग से 70 -800000 रुपये के इनाम कुश्ती विजेताओं को बांटे और हारे हुए पहलवान को भी सांत्वना राशि भेंट की , मै उनका शुक्रिया अदा करता हूँ और उम्मीद करता हूँ की भविष्य में भी वे इस परम्परा को जीवित रखेंगे और , इससे भी बेहतर इनाम दे पहलवानों का हौसला बढायेगे !
ENGLISH VERSION
A spectacular kushti dangal event was held on the occasion of Ganga Dashara and in the memory of social worker and patriot Chokhamal ji. Chokhamal ji was great revolutionary, fighting against the British occupation of India. The British police were always on the lookout for revolutionaries, so Seth Chokhamal ji had to find some way to meet with other resistance fighters without being caught. He decided to organize a big festival with a wrestling competition. Hundreds of people came to enjoy the festivities -- among them were fellow revolution disguised as farmers so they could blend into the crowd. And that’s how they were able to plan future protests, right under the noses of the British authorities.
Now India is a free country, but the tradition is kept alive and every year people come to visit the old shop of Seth Chokhamal. They offer prayers and hold a ceremony where a flag is immersed in the river to ward off evil. Sweets are distributed and later the wrestling begins.
The festival is still run by the direct descendents of Seth Chokhamal ji, first by his grandson and then by his great grandson Lala Mahesh Chand. Now his great great grandson, Shri Vipin Agrawal is in charge. Vipin Agarwal is a great and generous man. He is a social worker and helps lots of charities. And most recently, he created a trust to help preserve traditional Indian sports like kushti and kabaddi.
After the puja offerings at the akhara, the dangal started with the kids’ bouts.
Wrestler Manish, son of Suraj Pahalwan, won a good match, while Danish of Guru Jasram Akhara had a very good bout with Babu of Sarfabad. And Sintu Gujjar Pahalwan, son of Leelu Pahalwan wrestled Bhoop Pahalwan of Guru Jasram Akhara.
The first match was between Anil Pahalwan of Guru Jasram and Rajesh Bhati of Guru Hanuman Akhara. Rajesh Bhati had won a gold medal in the national championship recently. Both the wrestlers fought for a long time but the lights started fading and the match has to be stopped.
Kushti competitions are always free to watch. Fans donate prize money and at this dangal. Vipin Agarwal ji contributed 70-80000 prize with the help of people of the area and even gave consolation prizes to the losing wrestlers.
I am personally thankful to Vipin Agarwal for all that he has done for wrestling in India and I hope he continues this great tradition in future. The gurus, coaches and respected people of the society were honored with pagri as is tradition. Harbeer Pahalwan and Vipin Agarwal ji himself acted as referees. The area police helped in maintaining order and deserve thanks for their kind gesture.
1 comment:
great pictures again! love it..
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