Dainik Tribune
रेवाड़ी : रेवाड़ी में आजादी पूर्व से लेकर आज तक अखाड़े चल रहे हैं। इन अखाड़ों के संचालक पहलवानों के वृद्ध या मृत्यु हो जाने पर उनके शिष्यों ने इस परम्परा को आज भी कायम रखा है। इन अखाड़ों को वैसे तो कोई प्रशिक्षित सरकारी कोच नहीं मिला, लेकिन गुरुओं ने ही प्रशिक्षण देकर अपने चेलों को बलिष्ठ व सुसंस्कारित किया। इनमें से अनेक पहलवानों ने राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर कुश्तियों में मैडल भी बटोरे हैं। जिला रेवाड़ी में अखाड़ों का रंग अब धीरे-धीरे फीका पडऩे लगा है। जिन अखाड़ों के नामी पहलवान दूर-दराज के दंगलों में जाकर अपनी पहलवानी का लोहा मनवाते थे, वहां आज बदलते परिवेश में अखाड़ों में प्रशिक्षण लेने वाले युवाओं व किशोरों की संख्या निरंतर घटती जा रही है।
नगर का छोटा तालाब अखाड़ा आजादी पूर्व से आज तक चल रहा है। यह यहां का सबसे पुराना अखाड़ा है। इस अखाड़े को अपने जमाने के विख्यात पहलवान जमनागिरी बाबा चलाते थे। इस अखाड़े में रेवाड़ी के अलावा निकटवर्ती गांवों के सैकड़ों पहलवान आते थे। जमनागिरी नामी पहलवान थे और उनका डंका दूर-दूर तक बजता था। जमनागिरी के बाद उनके शिष्य नई बस्ती रेवाड़ी निवासी लीला खलीफा ने इस अखाड़े का दायित्व संभाला। उनके गुरु सूरजा सैनी थे। यहां के रतिया व पाई नामक पहलवानों की भी खूब धूम रही। लीला
नगर का छोटा तालाब अखाड़ा आजादी पूर्व से आज तक चल रहा है। यह यहां का सबसे पुराना अखाड़ा है। इस अखाड़े को अपने जमाने के विख्यात पहलवान जमनागिरी बाबा चलाते थे। इस अखाड़े में रेवाड़ी के अलावा निकटवर्ती गांवों के सैकड़ों पहलवान आते थे। जमनागिरी नामी पहलवान थे और उनका डंका दूर-दूर तक बजता था। जमनागिरी के बाद उनके शिष्य नई बस्ती रेवाड़ी निवासी लीला खलीफा ने इस अखाड़े का दायित्व संभाला। उनके गुरु सूरजा सैनी थे। यहां के रतिया व पाई नामक पहलवानों की भी खूब धूम रही। लीला
खलीफा के बाद छोटा तालाब अखाड़ा को संचालित करने वाले भाखरी के टुंटा पहलवान उर्फ मूलचन्द से अच्छे-अच्छे पहलवान घबराते थे। टुंटा पहलवान के गुजर जाने के बाद से 57 वर्षीय रेवाड़ी निवासी भाई श्योलाल पहलवान इस अखाड़े की जिम्मेदारी पिछले 30 सालों से संभाले हुए हैं। वह बताते हैं कि छोटा तालाब अखाड़ा ने अनेक नामी पहलवान दिए हैं। जिनमें जयसिंह यादव पीटीआई डयोढ़ई गूजरीवास, लीला खलीफा के पुत्र प्रेमचन्द, करतार हांसाका, रोहताश चौहान मोहल्ला बड़ा तालाब, खुशीराम पहलवान भूड़ला संगवाड़ी, रामानंद कमालपुर के नाम उल्लेखनीय हैं। इन पहलवानों ने खुले दंगलों में भाग लेकर खूब नाम कमाया। भाई श्योलाल द्वारा प्रशिक्षित पहलवान सुखबीर, सुरेन्द्र पहलवान भालखी माजरा, कृष्ण सिंह राजगढ़, मनोज ठठेरा नई बस्ती, मनोज कुमार कुंडल, देशराज सांतो, संजय उर्फ सोनू, करण सिंह, अशोक बधराना के अलावा उनके स्वयं के पुत्र विकास वीर भी पहलवानी में नाम कमा रहे हैं।
जिला के प्रमुख अखाड़े
नगर के छोटा तालाब अखाड़ा, हनुमान अखाड़ा के अलावा, आसलवास, टीकला, बुड़ौली, बावल, बलवाड़ी में भी अखाड़े चल रहे हैं। हनुमान अखाड़ा व आसलवास के आजादनाथ अखाड़े का संचालन अशोक पहलवान करते हैं और यहां से अच्छे पहलवान तैयार हो रहे हैं। इन अखाड़ों के अलावा ठेठरावाली बगीची, सौलहराही व ब्रह्मगढ़ पर भी अखाड़े चलते थे जो आज बंद हो चुके हैं।
सुविधा के अभाव में तैयार नहीं हो रहे पहलवान
जिला में जितने भी अखाड़े चल रहे हैं, उनमें संचालक ही प्रशिक्षक हैं। सरकार की ओर से आज तक कुश्ती का कोई कोच जिला को नहीं मिला है। अखाड़ा संचालक भाई श्योलाल व अशोक पहलवान बताते हैं कि क्षेत्र के युवाओं में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, लेकिन सरकार की ओर से सुविधा व सहायता का भारी अभाव है। इस खेल को बढ़ावा देने के लिए आज तक गंभीर प्रयास नहीं हुए। जब युवाओं को ही सुविधाएं नहीं हैं तो लड़कियां भी इस क्षेत्र में आगे नहीं आ पाईं। आज के माहौल को देखते हुए अभिभावक भी अपने बच्चों को कुश्ती की बजाय अन्य खेलों की तरफ मोड़ रहे हैं। वह कहते हैं कि सुविधाएं मिलने पर मैडल लाने वाले अनेक बच्चे सामने आ सकते हैं।
जिला के प्रमुख अखाड़े
नगर के छोटा तालाब अखाड़ा, हनुमान अखाड़ा के अलावा, आसलवास, टीकला, बुड़ौली, बावल, बलवाड़ी में भी अखाड़े चल रहे हैं। हनुमान अखाड़ा व आसलवास के आजादनाथ अखाड़े का संचालन अशोक पहलवान करते हैं और यहां से अच्छे पहलवान तैयार हो रहे हैं। इन अखाड़ों के अलावा ठेठरावाली बगीची, सौलहराही व ब्रह्मगढ़ पर भी अखाड़े चलते थे जो आज बंद हो चुके हैं।
सुविधा के अभाव में तैयार नहीं हो रहे पहलवान
जिला में जितने भी अखाड़े चल रहे हैं, उनमें संचालक ही प्रशिक्षक हैं। सरकार की ओर से आज तक कुश्ती का कोई कोच जिला को नहीं मिला है। अखाड़ा संचालक भाई श्योलाल व अशोक पहलवान बताते हैं कि क्षेत्र के युवाओं में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, लेकिन सरकार की ओर से सुविधा व सहायता का भारी अभाव है। इस खेल को बढ़ावा देने के लिए आज तक गंभीर प्रयास नहीं हुए। जब युवाओं को ही सुविधाएं नहीं हैं तो लड़कियां भी इस क्षेत्र में आगे नहीं आ पाईं। आज के माहौल को देखते हुए अभिभावक भी अपने बच्चों को कुश्ती की बजाय अन्य खेलों की तरफ मोड़ रहे हैं। वह कहते हैं कि सुविधाएं मिलने पर मैडल लाने वाले अनेक बच्चे सामने आ सकते हैं।
जहां देखा दंगल, उतर पड़े
वर्तमान में रेवाड़ी के छोटा तालाब अखाड़ा के संचालक भाई श्योलाल का हाल यह था कि जहां भी दंगल देखते वहीं कुश्ती लडऩे के लिए उतर पड़ते थे। फिर चाहे शादी में जा रहे हों या किसी अन्य जरूरी काम से, उन्हें इसकी चिंता नहीं रहती थी। आज से 25 साल पहले एक बार वह अपने एक दोस्त की शादी में जा रहे थे। उनकी कार अन्य बारातियों से आगे थी। रास्ते में देखा कि दंगल हो रहा है। भाई श्योलाल का पहलवानी जोश जाग गया और वह दंगल में उतर गए और प्रतिद्वंद्वी को चित कर दिया। दर्शकों ने उन्हें कंधों पर उठा लिया। तब तक बारात की बस भी आ गयी। बारातियों ने देखा कि लोगों ने भाई श्योलाल को घेर रखा है। उन्होंने समझा कि श्योलाल का झगड़ा हो गया है इसी कारण लोग उन्हें घेरे खड़े हैं। बाद में पूरा माजरा समझने के बाद बारातियों की जान में जान आयी। इस कुश्ती में भाई श्योलाल को 1-1, 2-2, 5-5 के नोट के रूप में करीब 500 रुपये इनाम में मिले थे। इसी तरह भाई श्योलाल एक बार अपने साथियों के साथ जरूरी काम से चंडीगढ़ आ रहे थे। करनाल बाईपास पर उनकी मैटाडोर का पहिया पंक्चर हो गया। जब मैटाडोर में उनके साथी स्टपनी लगा रहे थे तो भाई श्योलाल ने देखा कि सामने दंगल हो रहा है। वह वहां पहुंच गए और कुश्ती लडऩे की इच्छा जाहिर की। आयोजकों ने उनके वजन के हिसाब से दंगल में पहलवान खड़ा कर दिया। अब समस्या लंगोट की थी जोकि उनके पास नहीं था। आयोजकों ने लंगोट भी उपलब्ध करवा दिया और उसके बाद कुश्ती लड़ी तो दो सैकेंड में प्रतिद्वंद्वी को चित कर दिया। उसके बाद आयोजकों ने एक और पहलवान के साथ कुश्ती लडऩे को कहा तो भाई श्योलाल उसके लिए भी राजी हो गये और उसे भी चंद मिनटों में चित कर दिया। इससे आयोजक थोड़ा तैश में आ गये और एक और कुश्ती लडऩे की ऑफर दी लेकिन चंडीगढ़ आने की जल्दी में उन्होंने हाथ जोड़कर माफी मांग ली। तब तक मैटाडोर की स्टपनी भी बदल ली गयी थी।
भाई श्योलाल अखाड़े को मां की तरह प्यार करते हैं और कहते हैं, ‘इसके (अखाड़े के) आशीर्वाद से ही आज मैं इस मुकाम पर हूं। आज धन, मान-सम्मान इसकी बदौलत ही है।’ भाई श्योलाल ने राजनीति में भी हाथ आजमाये और दो विधानसभा चुनाव लड़े लेकिन राजनीति इन्हें कुछ जमी नहीं।
भाई श्योलाल अखाड़े को मां की तरह प्यार करते हैं और कहते हैं, ‘इसके (अखाड़े के) आशीर्वाद से ही आज मैं इस मुकाम पर हूं। आज धन, मान-सम्मान इसकी बदौलत ही है।’ भाई श्योलाल ने राजनीति में भी हाथ आजमाये और दो विधानसभा चुनाव लड़े लेकिन राजनीति इन्हें कुछ जमी नहीं।
रेवाड़ी जिले के अखाड़े
मेलों में लगते थे इनामी दंगल
रेवाड़ी के मशहूर अखाड़ों के पहलवान खुले दंगलों में हिस्सा लेकर अपने गुरु व क्षेत्र का नाम रोशन करते रहे हैं। बीकानेर, मिल्कपुर, भाड़ावास, कमालपुर, बिठवाना, मुरलीपुर, जड़थल, नैचाना में हर वर्ष मेले लगते हैं। इन मेलों में इनामी कुश्ती दंगल लोगों के आकर्षण का केन्द्र रहे हैं। हजारों की संख्या में लोग इन मेलों में जमा होकर पहलवानों की कुश्तियों का आनंद उठाते हैं। पुराने जमाने में एक-दो आना व दो व पांच रुपए की इनामी कुश्तियां होती थीं। कुश्ती से पूर्व दो व पांच रुपए के नोट को अंगोछे में बांध दिया जाता था और विजयी पहलवान को यह राशि दे दी जाती थी। रेवाड़ी के पहलवानों की कुश्तियां रेलवे कालोनी स्थित कंकरवाली पर होती थीं।
रेवाड़ी के मशहूर अखाड़ों के पहलवान खुले दंगलों में हिस्सा लेकर अपने गुरु व क्षेत्र का नाम रोशन करते रहे हैं। बीकानेर, मिल्कपुर, भाड़ावास, कमालपुर, बिठवाना, मुरलीपुर, जड़थल, नैचाना में हर वर्ष मेले लगते हैं। इन मेलों में इनामी कुश्ती दंगल लोगों के आकर्षण का केन्द्र रहे हैं। हजारों की संख्या में लोग इन मेलों में जमा होकर पहलवानों की कुश्तियों का आनंद उठाते हैं। पुराने जमाने में एक-दो आना व दो व पांच रुपए की इनामी कुश्तियां होती थीं। कुश्ती से पूर्व दो व पांच रुपए के नोट को अंगोछे में बांध दिया जाता था और विजयी पहलवान को यह राशि दे दी जाती थी। रेवाड़ी के पहलवानों की कुश्तियां रेलवे कालोनी स्थित कंकरवाली पर होती थीं।
अशोक पहलवान ने संभाली पिता की विरासत
रेवाड़ी के अशोक पहलवान आज भी पिता से विरासत में मिले हनुमान अखाड़ा को चलाते हैं। इनसे पूर्व उनके पिता हनुमान सिंह यह अखाड़ा चलाते थे। यह अखाड़ा पिछले तीन दशकों से चल रहा है। इस अखाड़े से भी नामी पहलवान हुए। अशोक ने विश्वविद्यालय की ओर से राष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिता में सिल्वर मैडल जीता। रामानंद पहलवान व उनके भाई रामबाबू के साथ-साथ उनके पिता सोमदत्त पहलवानी में विख्यात थे। सोमदत्त ने दिल्ली में अपनी पहलवानी का परचम लहराते हुए दिल्ली केसरी का खिताब जीता। हनुमान अखाड़ा से दाव-पेंच सीख कर पहलवान बने गांव देवलावास के मनोज पहलवान अपनी ख्याति के बल पर न केवल गांव के सरपंच बने, बल्कि उन्होंने राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी हिस्सा लिया।
अमित व कृष्ण भाइयों ने अनेक मुकाबले जीते
रेवाड़ी के गांव गोकलगढ़ के दो भाइयों अमित व कृष्ण पहलवानी में खूब नाम कमा चुके हैं। अमित अपने समय के चोटी के पहलवान रहे हैं। राज्य स्तरीय 66 किलोग्राम प्रतियोगिता में वे सदैव अव्वल रहे। राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें कांस्य पदक मिला। इस समय वह कुश्ती की बदौलत सेना में हैं। अमित सेना में भी अपने दमखम का परचम लहराते हुए ऑल इंडिया आर्मी स्पोट्र्स कंट्रोल बोर्ड द्वारा आयोजित इंटर कमांड रेसलिंग 2009-10 में गोल्ड मैडल तथा राष्ट्रीय स्तर की सेंट्रल कमांड स्पोट्र्स चैम्पियनशिप 2009 में फ्री स्टाइल कुश्ती में कांस्य पदक जीत चुके हैं। अमित का बड़ा भाई कृष्ण भी खुले दंगल की प्रतियोगिताओं में आज भी हिस्सा ले रहे हैं।
बरसात के बाद सूखे तालाब में जुड़ता है दंगल
छोटा तालाब अखाड़ा अपने में ऐतिहासिकता सेमेटे हुए हैं। जिस छोटा तालाब के पास यह अखाड़ा चल रहा है, इस तालाब में कभी राजाओं की रानियां स्नान करने आती थीं। रेवाड़ी राजाओं की नगरी रही है, यहां बड़ा तालाब भी है, जिसे तेज सागर के नाम से जाना जाता है। इस विशाल तालाब का निर्माण राजा तेज सिंह ने करवाया था। छोटा तालाब भी राजाओं द्वारा ही बनवाया गया और यह रानियों के नहाने का प्रमुख स्थल था। रानियां सड़क के माध्यम से नहीं, बल्कि भूमिगत सुरंग से होकर जीवली बाजार स्थित रानी की ड्योढी से यहां आती थीं। 50 फुट गहरे इस तालाब में कभी-कभी बड़े दंगल भी होते हैं। छोटा तालाब में वर्षा के दिनों में जब पानी भर जाता था तो यहां युवाओं, बच्चों की मस्ती देखते ही बनती है।
राव बिरेन्द्र व उनके सांसद पुत्र भी कुश्ती के शौकीन रहे
पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्व. राव बिरेन्द्र सिंह ने कभी कुश्ती तो नहीं लड़ी, लेकिन वह कुश्ती देखने के शौकीन थे। उन्होंने अपने अहीर कॉलेज में कुश्ती प्रतियोगिताएं करवाईं और पहलवानों को सम्मानित भी किया। इसी तरह राव के पुत्र तथा सांसद राव इन्द्रजीत सिंह भी अखाड़ा दंगलों में मुख्यातिथि के तौर पर जा कर पहलवानों को प्रोत्साहित करते रहे हैं। पिछले साल छोटा तालाब अखाड़ा में आयोजित विशाल दंगल में उन्होंने अपनी उपस्थित दर्ज कराई और विजेता पहलवानों को सम्मानित किया।
हिंद केसरी के सामने नहीं आया कोई पहलवान
17-18 साल पहले छोटा तालाब अखाड़ा में राष्ट्रीय स्तर का इनामी खुला दंगल आयोजित किया गया था। इस दंगल में देशभर के नामी पहलवान आए। उनमें एक थे हिंद केसरी सुरेश। सुरेश जब कुश्ती के लिए अखाड़े में उतरे तो किसी पहलवान की हिम्मत उनके सामने आने की नहीं हुई। सुरेश को जब किसी ने चुनौती नहीं दी तो उन्हें विजेता घोषित कर दिया था।
जिला कुमार कृष्ण व मुकेश ने जीते अनेक मैडल
राजगढ़ के कृष्ण सिंह ने विश्वविद्यालय की ओर से हरियाणा ओलम्पिक संघ, पंचकूला द्वारा आयोजित कुश्ती प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त किया। सिरसा में आयोजित हरियाणा राज्य अखाड़ा प्रतियोगिता में उन्होंने द्वितीय स्थान पाया। गुडग़ांव में आयोजित राज्य स्तरीय कुश्ती में वह तीसरे स्थान पर रहे। वह वर्ष 2005-06 में रेवाड़ी के जिला कुमार भी रहे। इसी क्रम में रेवाड़ी के मोहल्ला बलभद्र सराय के मुकेश कुमार ने छोटा तालाब अखाड़ा से प्रशिक्षण लेकर राज्य स्तर पर कांस्य जीता। ओपन अखाड़ा प्रतियोगिताओं में वह रजत व कांस्य पदक जीत चुके हैं। उनके भाई सुनील कुमार वर्ष 2000 से 2005 तक अनेक राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में भाग लेकर रजत व कांस्य पदक जीत चुके हैं। सुनील आनंदपुर साहिब (पंजाब) तक कुश्ती लड़ चुका है। इन दोनों भाइयों को जब कुश्ती में भविष्य सुंदर दिखाई नहीं दिया तो मुकेश ने दुकान कर ली और सुनील अब टैक्सी चालक है। भालखी माजरा के सुरेन्द्र पहलवान ने 76 किलोग्राम वर्ग की जिला स्तरीय प्रतियोगिता में गोल्ड मैडल जीता था।
टूटे हाथ की करामात, खौफ था टुंटे पहलवान का
छोटा तालाब अखाड़े के खलीफा टुंटा पहलवान से अच्छे-अच्छे पहलवान घबराते थे। रेवाड़ी जिला के गांव भाखरी के मूलचंद पहलवानी करते थे। एक बार उनका हाथ थ्रैशर में आ गया और उनका दायां हाथ आधा कट गया। फिर भी उन्होंने कुश्ती नहीं छोड़ी और मूलचंद टुंटा पहलवान के नाम से विख्यात हो गए। बताते हैं कि उनका टूटा हुआ हाथ ही कुश्ती में कमाल दिखाता था और उन्होंने टूटे हाथ से कुश्ती लडऩे की नयी तकनीक इजाद कर ली। टूटे हाथ की ही करामात थी कि उन्होंने अनेक दिग्गज पहलवानों को धूल चटायी। उनके दांव देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ती थी। अब वह इस दुनिया में नहीं हैं।
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