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Sep 7, 2013

Guru Leelu Akhada in Ladpur, Haryana

By Deepak Ansuia Prasad
गुरु लीलू- लाडपुर अखाडा



हरयाणा के झज्जर डिस्ट्रिक्ट में लीलू पहलवान जिन्हें "लीलू लाडपुर" के नाम से भी जाना जाता है , एक बेहतरीन कुश्ती अखाडा चलते हैं. लाडपुर गाँव शोर, प्रदुषण से तो दूर है ही यहाँ की हरियाली और शुद्ध हवा मन मोह लेती है. अखाड़े पर पहुंचा तो दोपहर का समय था , हवा में ठण्ड ने तेज धुप के प्रभाव को मंद कर दिया था। पहलवान अपने कमरों में आराम कर रहे थे , गुरु जी को मेरे आने की सूचना दी गई और उनसे मिलकर बहुत प्रसन्नता का अनुभव हुआ , उनसे बातचीत में उन्होंने बताया की अखाड़े में 150 से ऊपर बच्चे कुश्ती का अभ्यास करते हैं , जिनमे कुछ सुबह तो कुछ शाम. कुछ पहलवान अखाड़े पर ही रहते हैं तो कुछ अपने घरों से आना- जाना करते है , अखाड़े में पहलवानों के लिए अच्छे हवादार कमरों में लगे कूलर -पंखों और ऐ सी में पहलवान ठीक से आराम कर लेते हैं , अखाड़े में ही पानी साफ़ करने की R.O. मशीन लगी है जो स्वच्छ पीने का जल उपलब्ध कराती है वहीँ पहलवानों के लिए एक बढ़िया किचन की भी व्यवस्था है , जिसमे पहलवान अपने घर से लाये हुए नाज , और दूध घी खा अपनी सेहत बनाते हैं। अखाड़े में फुल्ली कवर्ड मैट हाल पहलवानों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रैक्टिस और दांव पेंच सीखने की सुविधा देता है , उधर मैट हाल के साथ ही मिटटी का अखाडा जुड़ा है , मिटटी का अखाडा भी ऊपर से टिन शेड से कवर्ड है , जिससे के बारिश या गहरी धुप जैसे प्रतिकूल मौसम में भी पहलवान जोर कर सकें , और मिटटी के अखाड़े के कोने पर एक बहुत सुन्दर मंदिर है जिसमे भगवन राम और हनुमान जी की मूर्तियों के दर्शन होते है. अखाड़े के इन सुविधाओं , गुरु लीलू की शिक्षा और पहलवानों की अटूट मेहनत के अच्छे परिणाम आये और आज इस अखाड़े से मिटटी और मैट के अनेकों नामी गिरामी पहलवान निकले हैं. गुरु लीलू बताते है की जो आज दिख रहा है पहले वैसा नहीं था , उनके पिताजी श्री रघुवीर जी ने मिटटी का एक छोटा सा अखाडा बनाया था जिसमे सिवाय अखाड़े के कोई और सुविधा न थी , इसलिए गुरु लीलू दिल्ली की तरफ पहलवानी सीखने अखाडा भगवतस्वरूप पहुंचे और उनके पीछे उनके भाई साब सिंह भी जो आगे चल कर बहुत बढ़िया पहलवान बने और आज आर्म्ड फोर्सेज में इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत हैं. इधर लीलू पहलवान वापस गाँव लौटे और बड़ी लगन और मेहनत के साथ गाँव के बच्चो को कुश्ती सिखाने लगे और साथ ही अखाड़े के लिए सुविधाओं को जुटाने का कठिन काम भी. अखाड़े के बच्चों ने भी कोई कुश्ती व् मैट पे मैडल लाने में कोई कसर न छोड़ी , डिस्ट्रिक्ट लेवल पर अखाड़े ने100 से ऊपर , स्टेट लेवल पर 25 नेशनल लेवल पर 15 और 4 मैडल अंतर्राष्ट्रीय लेवल पर पहलवान ला चुके हैं और भविष्य के लिए प्रयत्नशील हैं. अभी हाल ही में अखाड़े के बेहतरीन पहलवान परवीन डागर ने वर्ल्ड चैंपियनशिप में भारत को कांस्य पदक दिलाया है. और इसी तरह अंतर्राष्ट्रीय पहलवान रविंदर ने १२० किलो में अनेकों पदक जीते हैं, अखाड़े में मंजीत, सूरजभान, लीला , जयप्रकाश, राजू, राजेश, राजकुमार , धमे , मनीष , दिनेश , सोमवीर, शिव कुमार, कुलदीप मोहित, सोनू, भगत सिंह , गुज्जर, सुमित जैसे जाने माने पहलवान रह चुके हैं. जिनमे से कुछ अभी -२ यहाँ पर अभ्यास करते हैं. लीलू पहलवान बताते की जब कोई पहलवान नाम कमा लेते है तो उन्हें सम्मान और इनाम देने की राजनीति शुरू हो जाती , लेकिन उभरते पहलवानों की तरफ कोई ध्यान नहीं देता, वहीँ एक ओर अधिकतर पहलवान नौकरी की तलाश में पहलवानी से जुड़ जाते हैं और कहीं भी नौकरी मिलने पर खलीफा हो जाते है , उन्होंने बताया की पहलवानों को उनके शुरूआती समय से ही मदद की और पहलवानों को भी नौकरी का लालच छोड़ मैडल की तरफ ध्यान दी की जरूरत है। उन्होंने बताया की मिटटी की कुश्ती कभी ख़तम नहीं होनी चाहिए। मिटटी की कुश्ती की एक पुरानी संस्था के साथ मिलकर उन्होंने सरकार से बात भी की , पर सरकार ने यह कहकर टाल दिया की मिटटी की कुश्ती विदेशों में नहीं हैं. मेरा मानना है की हमारे देश की सरकार लालफीताशाही की सरकार है अन्यथा क्या उन्हें इतना मालूम नहीं की विश्व के कई देश मिटटी की कुश्ती लड़ते है और अगर कोशिस की जाय तो मिटटी की कुश्ती एशियाई गेम्स जैसे खेलों में स्थान पा सकती है. लीलू पहलवान जी का आदर सत्कार पाकर धन्य हुआ, उनसे बात करते हुए समय का पता ही नहीं चला दिन ढल चूका था और रात होने को थी अतः उनसे विदा ली।


ENGLISH VERSION



After a long drive from Delhi, it was a relief to reach Leelu Akhada Ladpur. The akhada, run by Leelu Pahlwan in his village in Haryana, is a beautiful, peaceful place, free from the noise and pollution of the city. A friend from the USA who is a chemical engineer and also an attorney came with me to learn about the traditions of Indian mud wrestling. Guru ji welcomed us when we arrived and said praised our efforts to help preserve Indian wrestling.
The akhada is well equipped with a good wrestling hall with a fine mat and a mud wrestling area. Wrestlers here work hard and have achieved many targets set by the guru. The akhada has won more than 100 medals at district level, 25 at state level, 15 at national level and 4 at the international level.
Leelu’s father Mr. Raghuvir founded the akhada years ago, starting out with just a makeshift dirt pit and Leelu Pahlawan had to go to Delhi to train in better facilities. He joined guru Bhagwatswaroop’s akhada followed by his brother Saab Singh who also became a very good wrestler and national champion.
After Leelu Pahlwan returned to his village he devoted himself to improving the akhada to give young wrestlers in the village a chance to learn the sport. He has succeeded well and presently more than 150 wrestlers are benefiting from his efforts.
Parveen Dagar is one of the star wrestlers of the akhada. He won a bronze medal in the 100 kilogram Greco-roman category at the juniot championship in Phuket, Thailand. And along with him his teammates brought home a total of five medals from the competition, a first for India. Parveen is a very amiable man who credits all his achievements to his guru and is working hard to improve.
Another wrestler, Ravinder, is now in the armed forces and has won many gold medals at the national and international level.
Manish Pahlwan weighs more than 100 kg and is focused on traditional Indian-style wrestling. He often competes in first prize matches at dangals. He is a kind and polite young man who works hard and is highly disciplined, sticking to a strict vegetarian diet. He told me that he has wrestled all over India for big prizes. Eating vegetables, fruits, milk and ghee, chapatti and rice, the massive man is working hard to reach the top of kushti wrestling.
Guru Leelu told me that nowadays wrestlers mostly aim at getting a job out of wrestling in place of medals. Politicians often give winning wrestlers cash or a job, but that’s mostly so they can get publicity. He also says the government is ignoring traditional wrestling. It should really be supporting it because it is part of the culture of the country and it is unique to India.
I personally feel that kushti should be included at least in the Asian Games as it has a large fan base across the globe, and many Asian countries have similar forms of traditional wrestling.









































































































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