Contributions Welcome

This blog belongs to everyone interested in preserving and promoting traditional Indian wrestling. Please feel free to contribute photos, videos, links to news articles or your own blog posts. E-mail contributions to kushtiwrestling@gmail.com.

Oct 21, 2018

Panjawar Village Dangal, Himachal Pradesh - India

By Deepak Ansuia Prasad



CLICK HERE TO WATCH ALL MATCHES

Ranjeet Singh Rana, of Village Panjawar, is secretary of Himachal Pradesh Congress Committee. He told me that he was the president of the block congress here for 10 years. He is a graduate of Govt College, where he was president of the Student Union and captain of the football team. During that time Una won the Inter University championship for two consecutive years. He also captained the Himachal Pradesh Football Team and played Santosh Trophy for three consecutive years. He went to Singapore for employment and remained there for 10 years. After coming back in 1996, he decided to promote sports and started a Kushti Dangal, which is now held every year over two days. This year, Ranjeet Singh Rana decided to felicitate children from different backgrounds who have achieved accolades. The first prize match between Kamaljeet Doomshedi and Rakesh Delhi was a delight to watch. Kamaljeet won this match in an action packed fight. In another match, Surmu Pahlwan of Hoshiyarpur defeated Vikar Khanna. Gaurav Indore won the second prize match. The Una Kesari competition was won by Sushil Pahalwan.


दीपक अनसूया प्रसाद भरद्वाज।
पंजावर गाँव का दंगल।

13 अक्टूबर, 2018

हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में हरोली विधानसभा के अंतर्गत पंजवार गाँव एक बेहद शांत और सुरम्य क्षेत्र हैं। यहाँ के एक सम्मानननीय निवासी रणजीत सिंह राणा जी , हर साल पंजावर में बहुत खूबसूरत दंगल पिछले पंद्रह सालों से लगातार कराते आ रहे हैं। राणा जी वर्तमान में हिमाचल प्रदेश कांग्रेस सचिव हैं। अपनी मेहनत और लगन से वे इस पद पर हैं। उन्होंने क्षेत्र में दस साल तक ब्लॉक अध्यक्ष का पदभार भी संभाला। ऊना कॉलेज से ग्रेजुएट राणा जी , कॉलेज छात्रसंघ के अध्यक्ष भी रहे। साथ ही वो कॉलेज फ़ुटबाल टीम और हिमाचल प्रदेश की फ़ुटबाल टीम के कप्तान में रहे , अपनी कप्तानी में उनकी कॉलेज टीम ने कई बार चैंपियनशिप जीती व् हिमाचल की टीम से उन्होंने देश की कई फ़ुटबाल टीम में शिरकत जैसे डुरंड कप , संतोष ट्रॉफी इत्यादि। राणा जी कुछ समय के बेहरीन और फिर सिंगापुर में कार्यरत रहे। वापस लौटकर उन्होंने इस कुश्ती दंगल की आधारशिला रखी , जिसमे शिरकत करने का मुझे इस बार मौका मिला। उनके इस निमंतरण के लिए राणा जी का ह्रदय से आभारी हूँ।
पंजावर में यह दंगल क्षेत्र में खेलों के प्रचार प्रसार का मुख्य जरिया हैं। साथ ही राणा जी की कोशिश रहती हैं की अन्य क्षेत्रों में काबिल प्रतिभाओं का भी सम्मान और उत्साह वर्धन हो। इस बार उन्होंने अकैडमिक , फ़ुटबाल , मेडिकल जैसे क्षेत्रों में नाम कमा रहे बच्चों को पुरष्कार देकर उनका उत्साह वर्धन किया। उनका यह प्रयास सच में सराहनीय हैं। कोपरेटिव मूवमेंट की शुरआत और इस दंगल की योजना ने पंजावर को एक खास पहचान दी हैं। सन 1892 में जब कोपरेटिव सोसाइटीज़ एक्ट भी न बना था ( Co-operative Societies Act in 1904.) तब पंजावर में पहली कोपरेटिव सोसाइटी गठित की गई थी जिनकी संख्या देश के आज़ाद होने तक 668 पहुँच चुकी थी। आज बहुत से प्रोजेक्ट यहाँ चल रहे हैं। इस काम की शुरुआत करने का श्रेय पंजावर के मियां हीरासिंह जी को जाता हैं। सच में बड़ा ऐतिहासिक गाँव हैं।

श्री मुकेश अग्निहोत्री जी यहाँ के वर्तमान विधायक हैं। भूतपूर्व सरकार में इंडस्ट्री मिनिस्टर रह चुके विधायक जी दंगल के मुख्य अतिथि रहे। हरोली विधानसभा के औद्योगिक विकास की नीवं रखने वाले मुकेश जी ने दंगल को प्रोत्साहन भी दिया। राणा जी ने कहा की जल्द ही औद्योगिक विकास में भी हरोली विधानसभा आगे बढ़ेगी। साथ ही लोअर पंजावर से कप्तान अमरीक सिंह , गुरबचन जी , प्रधान गुलशन जी व् पूरे इलाके के लोगों ने भी शिरकत कर इस दंगल की शोभा बढ़ाई। रोशन जी , संजीव जसवाल जी ने जोड़ मिलाये। उनकी मेहनत से दंगल में बढ़िया कुश्तियां हुई। मेजर और प्रीती ने बुलेट पे करतब दिखा कर समां बांध दिया। वहीँ एक पुराने पहलवान ने सौ किलो की बोरी उठाई। तीन पुराने पहलवानों ने एक छल्ले में से गुजरकर दर्शकों का मनोरंजन किया। दंगल में प्रमोद सिंह व् दीवान जी ने रेफ़री ( निर्णायकों ) का काम किया।

रोशन जी का बड़ा नाम सुना हैं। ऐसा मैंने एक लेख में लिखा था। मेरे कैमरे में वो कभी कैद न हुए। इस बार दंगल में उनका नाम भी सुना। पुराने पहलवान हैं , मै समझ सकता हूँ की कुश्ती का प्रेम बड़ा विकट हैं , यहाँ जो एक बार प्रेमी बना तो हमेशा के लिए यहीं का होके रह गया। मैंने ये भी सुना था की बड़े लम्बे समय से वे दंगलों में शिरकत करते रहे हैं। उन्होंने आकर जोड़ मिलाने की कमान संभाली। पहलवानो को बखूबी पहचानने की उनकी प्रतिभा को मैंने यहाँ जाना। शांत और आश्वस्त दिखने वाले इस पहलवान , कुश्ती प्रेमी को काम करते देख मुझे लगा की हिमाचल के दंगलों को प्रसिद्धि दिलाने वाले शायद यही लोग होंगे। मैंने उनसे मुलाकात की , जब परिचय हुआ तो उन्होंने मुझसे एक बात ही कही , आलोचना उसी की होती हैं जो कुछ करता हैं। दंगल के अंत में राणा जी ने उनका और मेरा इकट्ठे सम्मान किया।

दोस्तों मीठे में जलेबी मुझे बहुत पसंद हैं और वो भी अगर दिल्ली में घंटेवाला की हो तो क्या कहने। नवाज अली भाई की कमेंटरी से मुझे दिल्ली की जलेबी की याद आजाती हैं। पूरी दुनिया में जाती हैं , घंटेवाला की जलेबी और पूरी दुनिया फैन हैं भाई नवाजलि की कमेंटरी की। इस दंगल में उन्होंने भी कमेंटरी कर कुश्ती प्रेमियों को रोमांचित किया।

Sep 8, 2018

Dangal at Sarsa Nangal Village - Ropar Punjab






सारसा नांगल दा दंगल
Dangal at Sarsa Nangal Village - Ropar Punjab

By Deepak Ansuia Prasad

मित्रों जायंट रेडवुड धरती पर पाई जाने वाली सबसे बड़ी , भारी , और उम्रदराज जीवित प्रजाति हैं। ये पेड़ 300 फ़ीट तक ऊँचे हो सकते हैं , और सबसे पुराने पेड़ की उम्र लगभग 3500 साल आंकी गई। बहुत सी जानकारियां और हैं , मसलन इन हज़ारों हज़ार साल पुराने दरख्तों को किसी ने पानी , खाद नहीं दिया , किसी योजना , आरक्षण या योगदान के बिना ही ये इतने बड़े और शक्तिशाली बने। क्या कुछ और हैं , जो इनके बराबर हो ? कभी कभी जब मैं जॉइंट रेडवुड के बारे में सोचता हूँ तो मुझे अपनी देशी कुश्ती की याद आ ही जाती हैं। लगभग उतने ही वर्षों से , उतनी ही बड़ी , उतनी ही शानदार और आकर्षक। और साथ ही बिना खाद पानी , या सरकारी , गैर सरकारी प्रोत्साहन के , कुश्ती आज भी एक बड़ा खेल हैं। बड़ा हाथी नहीं बड़ा रेडवुड हैं। धरती पर सबसे पुराणी जीवित चीज। तो फिर बिना मदद के ये सबकुछ कैसे संभव हुआ ?

The giant redwoods are the oldest and largest trees. No one cared for them, no one gave them water, manure or other necessary things, yet they are mighty and – up to 300 feet high, and 3,500 years old. India’s kushti is the same -- more than 3,000 years old. It has long been the most loved sport for the people of India and now it is surging in popularity, even as the government ignores it and corporate sponsors fail to see the opportunities in supporting it. So how is this happening?

दोस्तों सारसा दंगल के माध्यम से आपको समझाता हूँ। चार साल पहले इस कार्यकर्म की शुरुआत हुई थी एक छोटे दंगल के रूप में। ये ऐसा ही था जैसे रेडवुड का छोटा सा पेड़ मानो जीने के लिए पानी जमीन से खैंच कर अपनी पत्तियों को दे रहा हो। बड़े 300 फ़ीट के पेड़ ऐसा नहीं कर पाएंगे , इसलिए उनकी पत्तियां ही पानी खींचने का काम करती हैं। ऐसे ही सारसा नांगल के सारे नगर निवासी , दंगल कमिटी , गुरदीप भाई , सोनी भाई इन पत्तियों सदृश कुश्ती के इस बड़े वृक्ष को खुराक पानी दे गए। तभी तो इस कार्यकर्म ने एक बड़े दंगल का रूप ले लिया। दर्शकों ने देश के रुस्तम पहलवान जस्सा पट्टी , बिरजू , मौसम खत्री , बेनिया , सुख , ताज और बाज जैसे पहलवानो की कुश्तियां देखि। दरअसल इन पहलवानो की लगन और मेहनत ने ही कुश्ती के इस पेड़ को सहारा दिया हुआ है .

We can understand the growth of Kushti wrestling through Sarsa Nangal Dangal. This Dangal was started four years ago as a small event. I also covered it at that time. The people of Sarsa Nangal are big kushti fans and wanted to expand the dangal each year. Gurdeep Brahamanwala, Soni of Sirsa Nangal, and their Dangal committee worked hard to raise funds for the event. And this year it was one of the biggest dangals in Punjab, with star wrestlers like Jassa Patti, Birju, Benia, Mausam Khatree, Sukh Babbehali, Taj and Baj Rauni coming to fight.

दंगल में पहली कुश्ती जस्सा पट्टी और अजय बारन के बीच हुई। बड़ी ही रोमांचक कुश्ती थी , अजय ने दांव पर दांव पर चलाए , पर पटों के भारी जस्सा पट्टी ने एक न चलने दी। उन्होंने अजय को चित कर अपना खेल दिखाया और दर्शकों को भाव विभोर कर दिया। इस कुश्ती के लिए दो साल से प्रयत्न कर
रहे गुरदीप भाई की सराहना करनी होगी , वे धुन के पक्के गुज्जर हैं। बेनिया और मौसम की कुश्ती रोमांचक थी , मौसम बेनिया को नीचे लाये और बेनिया ने भी दो चार बार पक्के दांव लगाए। पर मौसम को हराना आसान नहीं। बिरजू पहलवान और सुख बब्बेहाली की कुश्ती शानदार रही। सुख ने बड़ी कोशिशें की , लेकिन अनुभव और कलाकारी के पक्के बिरजू ने दांव के काउंटर अटैक कर डाले , कुल मिलाकर रोमांचकारी मुकाबला रहा। वहीँ बाज रॉनी पहलवान बराबर रहे बब्बू बब्बेहाली के साथ , व् ताज रौनी नरेंदर झंझेड़ी के साथ।

The first prize match was between Jassa Patti, who is from Piddi village of Tarantaran destrict of Punjab. His akhada is in Patti village of Punjab. His guru, Paana pahalwan, always accompanies him. Ajay Gujjar Pahalwan is from Lakhuwas village of Sohna district and hails from Sohna Inder Akahda. He is practising at Baran village in Punjab now. Gurdev of Baran is his coach here. Both the wrestlers are top wrestlers of India. People of Punjab have long wanted to see these two great wrestlers face off against each other. Gurdeep Bhai finally succeeded to arrange their bout at this event. It was one of the best bouts of the season. In the end, Jassa Patti proved that he is unbeatable by pinning Ajay Pahalwan.

The other matches were between wrestler Birju and Sukh Babbe Hali, and one another was between Mausam Khatree and Benia Bean. These matches were a great, yet each ended in a draw. Baj and Taj of Rauni village fought well too.

कुश्ती की सेवा कर रहे संत पहलवान को सोने की अंगूठी पहना कर दंगल कमिटी ने आदर्श प्रस्तुत किया। वहीँ रुस्तम पहलवान जस्सा पट्टी के ऊपर , शेरे भाई गहलमाजरी के लिखे गीत को गाने वाले गायक जस इंदरवीर को , और भाई कुश्ती के कवी सोनू किरालगढ़ , सभी गुरु खलीफाओं और कुश्ती प्रेमियों तथा विशिष्ट हस्तियों का स्वागत सम्मान किया गया। पंजाबी लाइव और मैंने ( दीपक अनसूया ) ने इस दंगल की वीडियो कवरेज की। गुरदीप भाई ने दंगल देखने मेरे लिए एक मोमेंटो ही हैं। उनका बहुत बहुत धन्यवाद।

Those who are serving kushtiwrestling are traditionally honoured at the dangals. Sant Pahalwan of Doomchedi village was given a golden ring, and another man, Inderveer, who sang a song about Jassa Patti was also honoured. The song is written by Shere Gahl Majri. All the special invitees, and gurus and coaches were also felicitated.

और अंत में , ये कहना चाहूंगा की मैं तो दिल्ली का हूँ , यहाँ बड़े बड़े मुग़ल , लोधी , खिलजी , मामलुक या गुलाम या और किसी वंश के बादशाह ,राजा महाराजा हुए। उन्होंने आलीशान महल किले बनाये और उनकी अज्जिमुश्शान शानो शौकत थी ,ऐशो आराम था। आज वो कहाँ हैं ? उनके महल -किले , हीरे जवाहरात , उनकी ऐयाशिओं के सबूत हैं। हाँ उन्होंने जनता को कुछ न दिया। आम लोगों के लिए जमना का दरिया तक पार करने की भी सुविधा न थी। वहीँ भले ही अंग्रेजों ने इन बादशाओं की सल्तनते छीन लीं पर जमना पर बने लोहे के पुंल पर खड़े होकर मैं सोचता हूँ , उन्होंने कुछ तो किया ऊपर उनकी देन लोहे की रेल चल रही हैं , नीचे सड़क , पैदल और सवार। सौ वर्ष हो गए ऐसी चीज आज तक न बनी। चलिए हम भी कुछ सबक ले अपने लिए तो करना ही हैं , समाज देश को कुछ दे कर जाएं , अपना नाम कर जाएँ जीवन सफल कर जाएं।

Although the moughal and other kings made big forts and houses for themselves, they never did anything good for the public. When I at the Iron Bridge over Jamuna at, Delhi, I could see trains passing through at the top, underneath is road is for vehicles, and side by side is a walkway for pedestrians. Thousands of vehicle and hundreds of train pass over it every day. It was a great gift to mankind. It serves as an example of the fact that one may earn a lot for himself, but he should work toward the benefit of all. Those who love kushti should come forward and help it to make it the best game of India.