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Jul 29, 2013

Guru Jasmal Akhada- Village Nahupur, Haryana



स्व. गुरु जसमाल अखाडा, गाँव नाथूपुर , हरयाणा

स्व. गुरु जसमाल के पुत्र सुनील पहलवान बताते हैं की , नाथूपुर गाँव का गुरु जसमाल अखाडा क्षेत्र का सबसे प्राचीन अखाडा हैं. अखाड़े के गुरु जसमाल पहलवान , आजीवन कुश्ती के प्रति समर्पित रहे , कुश्ती और पहलवानों के सेवा के उन्हें कुछ सूझता भी न था. पहलवानों को घर से जगा कर लाना , उनका अभ्यास और कुश्ती के दांव पेंच की शिक्षा , देना। दंगलो तथा मैट के खेलों में भाग लेना उनकी दिनचर्या थी. पहलवानी सीखने के अपने बचपन के दिनों से लेकर अपने अंतिम समय तक वो कुश्ती के प्रति समर्पित रहे , ऐसे महान व्यक्तित्व को मेरी भाव भीनी श्रधान्जली। कुछेक साल पहले बीमार होने पर , उन्होंने श्री पहलवान व् जिले पहलवान को को बुलाया और अखाड़े को चलाने का जिम्मा सौंप कर कहा की बच्चों को तैयार करों और अपने गाँव -देहात का नाम रोशन करो. सीरी पहलवान व् जिले पहलवान बताते है की जो शिक्षा गुरु जी ने हमें दी हम उसका पालन कर रहे हैं , और वही शिक्षा आगे बच्चों को दे रहे हैं और आगे भी देंगे। जिले व् सीरी पहलवान की कोशिशों के परिणामस्वरूप बच्चे अच्छा पर्दर्शन कर रहे हैं लेकिन ३० साल से भी ऊपर से चल रहे इस अखाड़े में मूलभूत सुविधाओं की कमी बहुत अखरती है.

The son of Late sh. guru jasmal told me that this is the oldest akhada of this region. Guru jasmal of this akhada remained devoted to the cause of wrestling throughout his entire life. He used to wake up wrestlers in the morning and take them to the akhada, where wrestling was practiced. And he entered his wrestlers in local wrestling competitions and freestyle wrestling tournaments. From his childhood till his end days he devoted himself to the sport of wrestling. My condolences to his loved ones. He fell ill a few years before and handed over the akhada reins to siri pahwlan and jile pahwlan. Jile pahlwan and siri pahwlan told me that they are following guru jasmal's teachings and will hand over the same to the disciples of the akhada. The pupils are learning well and showed some good results recently in school level and at dangala. However the akhada still lacks a mat and even basic facilities.

Ashadi dangal choki akara mathura

Jul 19, 2013

Guru Ratan Pahlwan Dangal

गुरु रतन अखाडा दंगल

By Deepak Ansuia Prasad



जब गुरु रतन अखाडा पहुंचा तो बच्चों की कुश्तियां आरम्भ हो चुकी थी। गुरु रतन माइक पकडे दंगल का संचालन कर रहे थे। उनके पुत्र दंगल में रेफरी का कार्य संभाले हुए थे। मंच पर गुरु मुन्नी अखाड़े से पहुंचे गुरु रविनंदन ब्रह्मचारी, प्रकाश पहलवान कुल्हिपुरिया, अशोक पहलवान , तुलसी सबलानिया , प्रमुख लीलू पहलवान , सूरज पहलवान को अभिवादन किया और अपना काम शुरू करने की गुरु रतन जी से इच्छा जाहिर की। गुरु रतन जी वर्षों से पहलवानों को तैयार करने में लगे हैं। उन्होंने कुश्ती के बहुत अच्छे पहलवान तैयार किये हैं । पहलवानी को समर्पित गुरु रतन जी ने मेरा स्वागत किया और अखाड़े के पास एक कुर्सी डाल दी जिससे मैं अपना काम ठीक से कर सकूं। दंगल में पहलवानों की कुश्तियों के बीच पुराने पहलवानों , कमेटी के सम्मानीय लोगों , व् कुश्ती व् समाज सेवा से जुड़े लोगों का भी गुरु रतन जी स्वागत करते रहे , उनसे पहलवानों की कुश्तियों का उदघाटन कराया जाता , व् उन्हें पगड़ी पहनाई जाती। पहलवानी की यह पुरानी परंपरा है जिसे स्वागत कहते हैं। दंगल में आने पर सभी गुरु खलीफाओं का पगड़ी पहना कर स्वागत करना दंगल की एक पुरानी परम्परा है। गुरु रतन अखाड़े के एक बाल पहलवान ने गुरु तुलसी को पगड़ी पहनाई , गुरु का अपने शिष्यों के प्रति प्रेम व् शिष्यों का अपने गुरु के प्रति आदर सम्मान पहलवानी का सार है। गुरु तुलसी ने अपने पिता का पगड़ी पहना कर स्वागत किया , इस तरह उन्होंने नई पीढ़ी को अपने गुरु, मात पिता व् अपने बड़े बुजुर्गो के सम्मान की परम्परा से परिचित कराया और मानदंड स्थापित किये। दंगल में पहलवानों की कुश्तियां बराबर चलती रही , छोटे पहलवानों की चार -२ कुश्तिया एक बार में , और बड़े पहलवानों की दो दो, इसी प्रकार बड़ी कुश्तिया एक जोड़ ही कराइ गई। गुरु रतन अखाड़े के सुनील , संदीप तथा गुरु राजकुमार अखाड़े से पवन ने अच्छी कुश्ती दिखाई। अखाड़े में दो खलीफाओं की कुश्ती भी हुई दोनों को बराबर घोषित किया गया। दंगल की पहली कुश्ती सिंटू गुर्जर पहलवान व् मानदोटी के कालू पहलवान के बीच तय की गई। हालांकि सूरज ढल चूका था और रात गहराती जा रही थी लेकिन न तो दर्शक न ही पहलवान टास - से मस हुए , छुट्टी की कुश्ती देख कर ही सब जाना चाहते थे , इसलिए कुश्ती अँधेरे में ही , मोबाइल , टोर्च व् गाडी की रौशनी की लाइट में शुरू की गई। दोनों पहलवान बराबर की जोड़ थे एक अटैक करता तो दूसरा बाख क्र काउंटर अटैक , दोनों पसीने व् मिटटी में लथ पथ हो कर कुश्ती लड़े , ढोल की आवाज या रेफरी अशोक पहलवान की वार्निंग पर कुश्ती तेज होती , तो कभी मिटटी लगा कर पहलवान कुश्ती में तेजी लाते , इस बीच बारह मिनट का तै समय ख़तम हुआ , पहलवानों से पूछने पर उन्हें दो मिनट और दिए गये लेकिन एक्स्ट्रा टाइम में भी कुश्ती का फैसला न हो सका , सिंटू के कोच सूरज पहलवान ने दंगल कमेटी से कुश्ती को अंकों के आधार पर करवाने की गुजारिश की , कमिटी ने पहलवानों की राय मांगी जिस पर कालू पहलवान ने मिटटी में अंकों से लड़ने पर इनकार किया तो दंगल कमेटी ने कुश्ती को बराबर घोषित कर जयकारा बोल दिया।


ENGLISH VERSION



When I reached Guru Ratan 's Akhada in village Dahka in Wajirabad, the dangal was already in progress. Children's bouts were taking place and guru Ratan was giving instructions. His son Amrit Pahwlan was busy refereeing. The akhada was surrounded by spectators and wrestlers waiting for there turn to wrestle.
At one corner there was a raised, covered platform with sofas on which dignitaries and chief guests were sitting. I paid my respects to Guru Ravinadan brahmchari of Guru Munni akhada , Prakash kulhipuriya pahlwan, ashok pahwlan, tulsi sablania, pramuk leelu pahwlan , suraj pahlwan and reached guru ratan and asked his permission to carry on my work.
Guru Ratan has been training wrestlers for decades. He is very experienced in his work and devoted to wrestling. At the beginning of the wrestlers’ bouts the chief guests, respected people of the society, village elders , gurus and coaches were given respects by head gear pagadi it is a custom in dangals.
Cash prize were given to the winning wrestlers while smaller awards were given to the defeated ones. Wrestlers sunil, sandeep of guru ratan akhada and pawan of guru rajkumar goswami akhada fought well.
The first prize match was between sintu gurjar pahwlan and kalu of mandoti village. The sun was already setting and the match started in dark. However people did not budge from their places because they wanted to see the final match.
The match was started in the light of mobile phones, torches and a car's headlighta. Both wrestlers were so good that within the given time of 12 minutes nobody could secure a pin.
Two minutes overtime were given, but neither wrestler could secure a fall. Sintu's coach suraj asked the dangal committee to decide the match on the basis of points, but kalu pahlwan refused to have the match scored on points. So the dangal committee declared the match a draw and distributed the prize money equally.















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