By Deepak Ansuia Prasad
बजरंग अखाडा ,
मोरेना रेलवे स्टेशन।
यूँ तो रेलवे में सैकड़ों पहलवान हैं , जिन्हे रेलवे ने अपनी मेहनत और कारीगरी की बदौलत नौकरी दी हैं। लेकिन रेलवे स्टेशन मोरेना के पास स्थित बजरंग अखाडा एक अनूठी कहानी बयान करता हैं। आस पास के और रेलवे में काम करने वाले कुली , मजदूर बच्चे यहाँ कुश्ती का अभ्यास कर बेहतरीन पहलवान बन गए हैं। आस पास के अच्छे दंगलों में उनकी कुश्ती कला का प्रदर्शन देखने लायक होता हैं। गरीबों के ये बच्चे किसी भी सहायता , संरक्षण या पहचान के अभाव के बावजूद कुश्ती कला को बचाये हुए एक बेहतरीन काम कर रहे हैं। इन पहलवानो में योगिंदर मावी व् संजू गूजर बहुत ही बेहतरीन पहलवान हैं। और 80 - 90 साल पुराने इस अखाड़े को दोनों पहलवान बखूबी चला रहे हैं।
हमारे देश में दूर दराज में फैली इन प्रतिभाओं को आज परखने की जरूरत हैं।
और उन्हें एक मौका देकर उन्हें उनका हक़ दिलाने की भी बहुत सख्त जरूरत हैं।
ENGLISH VERSION
There are many wrestlers employed by the railway company in India. They are often hired after they gain recognition by winning medals at competitions. Indian Railway has an Akhada in Delhi where many of the best wrestlers in India practice. But the railway akhada opposite Morena Ralway station is different.
Coolies, rickshaw drivers, labourers connected with the railway station and children living nearby have been practicing kushti at this wrestling school for years. A few of them have become very good wrestlers and have won many matches at local kushti competitions.
These wrestlers have trained well without any proper coaches or any help from the govt. or any sports authority. Among them, Yoginder Maavi and Sanju Gujjar are the best. They have been helping their wrestling brothers to hone their skills.
It is inspiring to see wrestlers of such modest means achieve success. If they had access to proper coaching they could go even farther.
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